थोड़ा और वक्त

एक औरत ही है, जो घर को बनाती  है, ऐसे में उसे कुछ हो जाए तो पूरा परिवार बिखर जाता है, वो खुद भी कहाँ जाना चाहती है, और चली भी जाए तो उसकी आत्मा  किस  कदर छटपटाती होगी, ये कहने की कोशिश की है मैंने  इस कविता में ...
घर घर नहीं होता अगर हम नहीं होते, बस चलता हमारा तो मौत की नींद मे हम कभी न सोते
कल रात एक खवाब देखा
मै सो रही थी, उठने की कोशिश की
उठ नहीं पाई, मेरा शरीर सो गया था
हमेशा के लिए, और रूह जाग रही थी
अरे अब कया करूँ
मेरी रूह छटपटा रही थी
मेरे शरीर में जाने के लिए
कितने काम है करने को
और तुम अब तक सो रही हो
उठो देखो सुबह हो गई
फूलों को पानी देना है
बच्चो को स्कूल भेजना है
नहाना है पूजा करनी है
अरे नाशता भी तो बनाना है
बच्चे भूखे चले जाएँगें
माँ की तबियत ठीक नहीं है
वो कहाँ ये सब कर पाएंगी
बाबू जी की दवा देनी थी
देखो कितनी देर हो गई
इनको भी काम पर जाना है
जा कर इनको भी जगा दूं
दूध वाला आता होगा
उसको उसका हिसाब बता दूं
राशन की थी लिस्ट बनानी
ओफ्फो सबजी भी थी लेकर  आनी
स्टोर की सफाई जरूरी है
छत भी थी एक बार साफ करानी

तूम ऐसे सोती जो रहोगी
कैसे ये सब हो पाएगा
आज नहीं हुआ तो
फिर कल कितना काम बढ जाएगा
सुनो अभी बहुत काम है
उठो अब उठ भी जाओ
रूह मेरे शरीर से कहती है
पर शरीर तो निस्तेज पड़ा था
उसमे जान कहाँ थी अब
अपनी जान गंवा कर भी
जिसका मन अटका पड़ा है
अपने घर में, अपने बच्चों में
जब जिंदा थी, और थक जाती थी
रोज की भागमभागी से
कहती थी भगवान् के पास
चली जाऊं तो ही छुट्टी पाऊंगी मैं
अब मिल तो गई छुट्टी
करो आराम अब
तो तुम्हे सब काम है करने
हाँ भगवान् जी  बुला लेना
बस आज के  काम निपटा लूँ
बच्चे थोड़े बड़े हो जाए
माँ बाबू जी ठीक हो जाए
मेरे बिना कौन इनको देखेगा
सब कुछ यहाँ बिखर जाएगा
मै सब संभाल दूं एक बार
अपना प्यार  घर संसार
बस थोड़ा वक्त और मिले तो
सब से मिल लूँ मैं एक बार
मरना तो है ही फिर एक दिन
उससे पहले, जी भर जी लूँ
मै एक बार , जी भर जी  लूँ मै एक  बार ....



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