किट्टी पार्टी

नमस्कार दोस्तों, आज एक अरसे के बाद, ब्लाग पर कुछ लिख रहीं हूँ, कुछ मौसम ने परेशान किया ,कुछ व्यस्तताओं ने और कुछ मौसमी बीमारियों ने, हम गृहिणियों का ये अच्छा है, बाकी सब घरेलू काम हम हर हाल में पूरा करती है। पर कोई व्यस्तता है, तो हम अपने शौक, अपने आराम, अपने लिए जरूरी कामों को छोड़ देती हैं ।

जैसे कि मै, बाकी सारे काम किये ब्लाग को पूरी तरह से अकेला छोड़ दिया। आज थोड़ी फुरसत मिली तो मन हो उठा कुछ लिखने को, किस विषय को चुनूं सोचा, तो स्त्रियों का एक बहुत ही पसंदीदा विषय दिमाग में हलचल मचाने लगा ।
क्या ? अरे किट्टी पार्टी बाबा, पर इस पर क्या लिखा जा सकता है ...
ये सोचने की बात है तो चलिए, कुछ सोचा जाए 😊 और एक  कविता लिखी जाए, मेरी किटी वाली बहनों, ये बस मेरी मन की बातें है। तो जरा मुस्कुरा कर पढियेगा, बस, इस कविता में कुछ शब्द अंग्रेजी के भी शामिल किये है, माफ कीजिएगा,  कयोंकि मेरी कविता के शीर्षक के साथ ये शब्द वैसे ही धुलते मिले है, जैसे चाट में चटनी, बिना इन शब्दों के, वो चटखारा नहीं आएगा 😅😅  कुछ चटपटापन भी तो चाहिए नीरस जिंदगी को थोड़ा रस देने के लिए  ....



कुछ साल पहले तक, अक्सर कुछ बहने,

मुझसे कहा करती थी,

आओ बहन, तुम भी किट्टी ज्वायन कर लो,

बहुत अच्छा लगेगा,

अरे एनजाय करोगी, सब से मिलती जुलती रहोगी

मुझे कभी समझ नहीं आया,ये एनजाय का कांसेप्ट,

और मै बस चुप रह जाती थी,

एक मुसकान के साथ टाल जाती थी ।

फिर धीरे धीरे उन्हे समझ आ ही गया

मै किटी मैटिरियल नहीं हूँ, या मै शायद घरेलू टाइप हूँ

क्या किट्टी में जाने से, सचमुच एनजाय होता है ?

एनजाय की परिभाषा हर एक की अपनी है,

वो काम जो दिल और दिमाग को सुकून दे,

एनजायमेंट के असली मायने वही है

चाहे हों घर के हो काम,चाहे हो समाज-सेवा,

चाहे पूजा-पाठ हो,चाहे लिखना हो,

चाहे हो पेड़ पौधों की सेवा,

इन कामों में कोई होड़ तो नहीं होती,

बेवजह, बेमतलब कोई दौड़ तो नहीं होती,

ना कोई कम्पीटिशन होता है,

काम अच्छा हो या बुरा, वो बस अपना होता है,

हर महीने एक दिन तो, कम से कम

घर से निकलेगे, पार्टी करेंगे, एनजाय करेंगे

खाना, पीना, और नये नये गेम खेलना,

यही किट्टी पार्टी का हिस्सा है

पर क्या बात इतनें भर रह जाती है,

हम औरतें अपना मुंह बंद कहाँ रख पाती हैं

गासिपस की पूरी, दुकान खुल जाती हैं,

हर घर की कहानी, थोड़ी थोड़ी बयाँ हो जाती है,

जिस के घर जाती है, बाहर निकल उसी का बैंड बजाती है,

तारीफें कम, बुराईयां ज्यादा बताती है।

कभी उसके खाने में, तो कभी उसके,

कपड़ो में नुकस निकालती है,

अगर बंदी होटल में करे इंतजाम, तो भी बाज नहीं आती हैं,

उसके चवायस आफ प्लेस पर,सवाल उठाती हैं ।

जरा भी इंतजाम हल्का हुआ तो, उसे कामचोर बताती है,

हाई सोसाइटी की होड़ में,

बेचारी मिडल क्लास पिस जाती है।

वो ना उनकी बराबरी कर पाती हैं,

और न उनसे कम आंके जाना चाहती हैं,

किट्टी की बारी जब भी आती हैं,

भरी वार्डरोब भी कम नजर आती हैं,

नतीजा किट्टी में, बजाय करने के एनजाय,

वो अपना सुकून लुटा आती है ....

किसी की ड्रेस, किसी की जयूलरी,

किसी का विदेशी परफयूम, किसी का मंहगा पर्स,

दिल में खूब उथल-पुथल मचाते है,

किट्टी पार्टी जो करे, वो बहने माॅरडन,

जो ना करे वो पिछड़े लोग कहलाते है,

हाँ जी हम सब ऐसे ही समाज से आते हैं ।

गेम किटी,थीम किटी, किटी पार्टी के अनेकों रूप है,

झट से तैयार हो, निकल जाती हैं बहने,

बिना देखे कि बाहर, ठंड, बारिश है, के धूप है,

किट्टी का नशा कुछ ऐसा चढा है,

सोशल मीडिया किटी के फोटो से भर पड़ा है

गेम में हारने वालियों के मुंह उतर जाते है,

जीतने वालियों को शायद,ओलम्पिक के मेडल मिल जाते है।

जो महिलाएं तीन-चार किटटियों में जाती,

उनके यहाँ तो एनजायमेंट के पेड़ लग जाते होंगे

आई एम श्योर, दुःख, तकलीफ, बीमारी,

उन्हे कभी नहीं सताते होंगे, या तो कम हो जाते होंगे,

पति और बच्चे भी एडजसटेबल हो गयें हैं

किट्टी की महत्ता को वो भी अच्छे से समझ गये हैं,

मै जब भी मिलती हूँ, अपनी किटी महिलाओं से,

खुद को तुलनात्मक नजर से देखने लगती हूँ ।

क्या मेरी जिंदगी में एनजायमेंट नहीं है ?

बस यही सोचा करतीं हूँ,

मै किसी किटी का हिस्सा नहीं,

फिर भी खुश तो रहती हूँ,

मै वीकएंडस पर रैस्टोरेंट नहीं जाती,

पर क्या मैं आधुनिक नहीं हूँ ...

मै माॅरडन कपड़े भी नहीं पहनती,

तो क्या मैं माॅरडन नहीं हूँ ....

मुझे महंगे लिबासों का शौक भी नहीं,

क्या मैं शौकीन नहीं हूँ ...

सुना था, विचारों की आधुनिकता,

सही में आधुनिकता की निशानी है,

हर एक के विचार, शौक अलग होते है ।

किट्टी पार्टी  करने वाले भी, एनजाय करते है,

और नहीं करने वाले भी,

शौक और जरूरत दो जुदा मसले है,

किट्टी वाली बहनों, ये कोई कटाक्ष नहीं है,

बस अपनी बात को कहने का एक तरीका है,

हर एक के जीने का,अपना अपना सलीका है,

कोई हर छोटी-बड़ी बातों में खुशी ढूंढ लेता है,

कोई सब कुछ पा कर भी,अधूर-अधुरा रहता है,

जब ज्यादा मिलता है, प्यास और बढ़ती है,

संतुष्टि फिर आने की बजाय और घटती है,

एनजाय करो, पर उसकी सीमाएं न बांधो,

जब मन भीतर से हो खुश, वही असली खुशी जानो।









Comments

  1. Lajawaab... Kuch panktiya to chu gai dill ko mam. Bravo.

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  2. बेहद खूबसूरत विषय पर लिखा है आपने और साहसिक सत्य भी.... लाजबाब 👌 अभिव्यक्ति आपकी 👏🏻 👏🏻

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    1. शुक्रिया अरुणिमा जी, थोड़ा मुश्किल तो होता है, ऐसे विषयों पर लिखना, पर जरूरत भी है, समाज में भेड़चाल के चलन को तोड़ना 🙏

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  3. आपने मेरे मन में उठ रहे विचारों को कविता का रुप दे दिया है, बहुत बढ़िया लिखा है आपने 👋👋👋👋👋💜💜💜💜

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    1. शुक्रिया, दिल को दिल से राह हुई, और एक दूसरे के विचार मेल खा गये, जान कर अचछा लगा कि,मुझ सा और लोग भी सोचते है,

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    2. Thank you so much Davindar Kaur CHAHAL ji Maa aapne first baar blog pr comment kiya am so happy ❤

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