ख्वाब

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हर रोज एक नया ख्वाब,

पनपता है आंखों में,

कुनमुनता है, पलकों की पगडंडी पर,

पंख लगा कर, उड़ जाना चाहता है,

हर रोज तैरता है, नींद की कश्ती में,

और साहिल पर,पहुंच जाना चाहता है,

पर हर ख्वाब की किस्मत में, तामीर कहां होती है,

पानी के बुलबुलों से, होते हैं ये,

हर ख्वाब की तकदीर कहां होती है,

पर चंद ख्वाब होतें‌ है,

जिन्हें आंखों से निकल कर,

उड़ने को आसमान मिलता है,

जिंदगी से जिन्हें बेशर्त,

 बेइंतहा, प्यार मिलता है,

 वो ख्वाब हमें, जिंदगी,

 जीने की एक वजह देते हैं,

  जागते सोते हर लम्हा,

  हमें लक्ष्य की ओर,

  बढ़ने की प्रेरणा देते हैं,

  तो बस बुनते रहो,

  ख्वाबों का रंग-बिरंगा स्वेटर,

  हसरतों के रेशमी ऊन से,

  और ज़िंदगी की कंपकंपाहट को,

  बदल दो, गर्माहट भरे सुकून में। 













 

  

  

  

  

  


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