#kchbaatemanki मैं

बहुत से पड़ाव से गुजरते हुए एक औरत एक बेटी, बीवी, बहु,और माँ का किरदार निभाते हुए उम्र के एक ऐसे पड़ाव पर आ जाती है जहां खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगती है।
बढती उम्र के साथ मन और शरीर दोनों थकने लगते हैं ।और मन में एक उथल पुथल सी रहती है । एक तरफ आईना उम्र बताया करता है और दूसरी तरफ मन की अधुरी ख्वाहिशें बढती उम्र का एहसास नहीं होने देती,
अजब मनःस्थिति होती है ये !!!!




हौले हौले से
उम्र गुजरती गई
और पता भी न चला
आईने ने बताया
जब काली घटाओं मे
चांदी की तारें चमकने लगी
दिन भर भागती दौड़ती "मैं"
अब शाम ढलने तक
थकने लगी .....

नींद कभी इतनी,
जरूरी तो नहीं थी ।
थकान से बोझिल,
पलकें मेरी,
अब वक्त से पहले,
झुकने लगी ।

"मै" जो भूलती नहीं थी ।
कभी कुछ,
अब चीजों को भी,
रख कर भूलने लगी,


"मै" कमजोर नहीं थी कभी,
बहुत सख्त दिल को,
रखा था हमेशा,
बड़ी से बड़ी,
मुश्किल में भी,
हमेशा हिम्मत रखी,
वही मैंं, अब छोटी छोटी,
बातों में डरने सहमने लगी।

कया ये उम्र के तकाजे हैं ?
या जिंदगी इसे ही कहते हैं ?
धीमी हो चली है।
वक्त की रफ्तार अब,
धीमे वक्त गुजरता है।
मन चंचल आंखें चंचल,
एक चंचल पल को तकती है।

बीते हुए सुनहरे कल की,
यादें अन्तर्मन में चलती हैं।
उम्र गुजरती गई,
"मै" वहीँ रह गई कहीं,
समेटते हुए,
सहेजते हुए,
अपनों को,
उनके सपनों को।

और मेरी अधुरी सी,
खवाहिशों वहीं,
रह गई, जहाँ से चली थी मै,
फिर जुटाई हिम्मत, एक बार,
और निकल पड़ी,

एक नये सफर पर,
जहाँ उम्र मायने नहीं रखती है,
जहाँ ख़्वाहिशें राह नहीं तकती है,
जहाँ  बस मन की ही करनी है,

अधुरा नहीं रखना कुछ भी,
सब कुछ पूरा करना है,
थकना नहीं अभी से,
अभी तो बहुत चलना है ....









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