नमस्कार आप सभी को .. हम जन्म लेते हैं, बड़े होते है, और फिर शादी, जो कि जिंदगी के एक नये सफ़र की शुरूआत होती है ... आंखों मे रंग-बिरंगे सपने सजाए मैंने भी जीवन के इस नये सफर की शुरुआत की,
शादी से पहले जब दहेज़, ससुराल, और सास ससुर की बहु के साथ दुर्व्यवहार की कहानी सुना करती थी, डर लगता था कि कहीं मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ तो ।
मैंने हमेशा से सोच रखा था, मै अपनी ससुराल में बहू बन के नहीं,बेटी बन के जाऊँगी, सास ससुर को अपने, मम्मी, पापा ही समझूंगी,और ननद देवर को भाई-बहन...
ससुराल में पहले दिन ही ये समझ में आ गया कि ससुराल घर नहीं होता, वो ससुराल ही है, बहुत सारे नियम, कायदे, कानून वाला, सुबह जागने से ले कर रात में सोने तक, उठने, बैठने, से ले कर हर छोटी, बड़ी बात के लिए आपको ससुराल में एक बहु के लिए बनाए गए कायदों के अनुसार चलना था ...
उस पल एक बात समझ आई मुझे कि बहू की बहुत जिम्मेदारियां होती है, और बहू बेटी नहीं होती ... मेरे मायके से बिलकुल अलग परिवेश था मेरे ससुराल का खाने पीने से ले कर बोल-चाल और बहुत ही जयादा रुढिवादी ... अब माँ की बहुत सारी बातों को न मानने का बेहद अफसोस हो रहा था मुझे, हमारे समाज में लड़कियों को माँ के घर से ही ससुराल में रहने के तरीके बताये, सिखाए जाते हैं, ये कह कर की सीख लो नहीं तो ससुराल वाले यही कहेंगे, मां ने कुछ सिखाया नहीं..
एक और बात उस दिन जान पाई मै कि शादी के लिए बस ये देखना जरूरी नहीं है कि पारिवारिक स्तर कैसा है ,बल्कि मानसिक स्तर की जानकारी होना भी बेहद जरुरी है, मानसिक स्तर से मेरा मतलब एक दूसरे की सोच मिलने से है..
जब सोच में जयादा फर्क होते है, तब बहुत मुश्किल होता है मनों का मिलना, माँ कहती थी आज बृहस्पति वार है .. बाल नहीं धोना, तो मै उनसे कहती थी, आप मानो ये सब मै नही मानती, आज लगता है, माँ की बातें सुनी होती तो जिंदगी इतनी मुश्किल नहीं होती, दिन तय थे, बाल धोने से ले कर कहीं आने जाने के ओर तो ओर खाने की चीजों के भी,
फलां-फलां दिन आप घर से बाहर नहीं जा सकते, फलां फलां दिन आप कुछ चीजें नही खा सकते ।। आज सुनने में ये सब बहुत अजीब सा लगेगा, पर ये सच था ...
सर से घूंघट हटाना बेहदूगी थी, पति की थाली में संग खा लेना बेशर्मी, ससुर के सामने जाने, बैठने और बोलने की इजाजत नहीं, बहू के होते अगर सास और ननद को काम करना पड़ा तो बहू में संस्कार नहीं ...
ये कैसी दुनिया मे आ गई थी, मुझे समझ नहीं आ रहा था, जिंदगी बस रसोई और घर के कामों में सिमटकर रह गई , मै, मेरे सपने, मेरे शौक मेरे नहीं रहे अब, बस घर परिवार को खुश रखने की जद्दोजहद में गुजरने लगी जिंदगी, एक अचछी बहू बनने की लगातार कोशिश भी कभी मुझे ये तमगा नहीं दिला पाई ...
गलती किसकी थी, न मेरी न मेरे माता-पिता की, और न मेरे ससुराल वालों की, गलती थी दो अलग-अलग परिवेश के लोगों की एक होने की, अलग माहौल में पले बढे होने की .. संकीर्ण विचारधारा की ।
जिंदगी आसान होती नहीं कभी इसे बनाना पड़ता है, कुछ सह कर कुछ चुप रह कर, और जरूरी हो तो कह कर..
जो गुजर गयी, वो कल की बात थी
आने वाली जिंदगी की सुनहरी रात थी
अब शिकवा गिला नहीं किसी से
जिंदगी जी रहीं हूँ अपनी मर्जी से
मुश्किल भरे दिनों ने सब्र दिया
हमे अपने सपनों के करीब
जाने का रास्ता दिखा दिया
आज जो मै आप सब के सामने हूँ, तो कुछ शिकायत नहीं किसी से, जीने का असल मतलब समझ रही हूँ, अपने शौकों मे खुद को फिर से जिंदा कर रही हूँ, जिंदगी बहुत खुबसूरत है दोस्तों, इसका हर पल भरपूर जियें और अपने सपनों को जींवत बनाए मेरी तरह 😊😍❤
शादी से पहले जब दहेज़, ससुराल, और सास ससुर की बहु के साथ दुर्व्यवहार की कहानी सुना करती थी, डर लगता था कि कहीं मेरे साथ ऐसा कुछ हुआ तो ।
मैंने हमेशा से सोच रखा था, मै अपनी ससुराल में बहू बन के नहीं,बेटी बन के जाऊँगी, सास ससुर को अपने, मम्मी, पापा ही समझूंगी,और ननद देवर को भाई-बहन...
ससुराल में पहले दिन ही ये समझ में आ गया कि ससुराल घर नहीं होता, वो ससुराल ही है, बहुत सारे नियम, कायदे, कानून वाला, सुबह जागने से ले कर रात में सोने तक, उठने, बैठने, से ले कर हर छोटी, बड़ी बात के लिए आपको ससुराल में एक बहु के लिए बनाए गए कायदों के अनुसार चलना था ...
उस पल एक बात समझ आई मुझे कि बहू की बहुत जिम्मेदारियां होती है, और बहू बेटी नहीं होती ... मेरे मायके से बिलकुल अलग परिवेश था मेरे ससुराल का खाने पीने से ले कर बोल-चाल और बहुत ही जयादा रुढिवादी ... अब माँ की बहुत सारी बातों को न मानने का बेहद अफसोस हो रहा था मुझे, हमारे समाज में लड़कियों को माँ के घर से ही ससुराल में रहने के तरीके बताये, सिखाए जाते हैं, ये कह कर की सीख लो नहीं तो ससुराल वाले यही कहेंगे, मां ने कुछ सिखाया नहीं..
एक और बात उस दिन जान पाई मै कि शादी के लिए बस ये देखना जरूरी नहीं है कि पारिवारिक स्तर कैसा है ,बल्कि मानसिक स्तर की जानकारी होना भी बेहद जरुरी है, मानसिक स्तर से मेरा मतलब एक दूसरे की सोच मिलने से है..
जब सोच में जयादा फर्क होते है, तब बहुत मुश्किल होता है मनों का मिलना, माँ कहती थी आज बृहस्पति वार है .. बाल नहीं धोना, तो मै उनसे कहती थी, आप मानो ये सब मै नही मानती, आज लगता है, माँ की बातें सुनी होती तो जिंदगी इतनी मुश्किल नहीं होती, दिन तय थे, बाल धोने से ले कर कहीं आने जाने के ओर तो ओर खाने की चीजों के भी,
फलां-फलां दिन आप घर से बाहर नहीं जा सकते, फलां फलां दिन आप कुछ चीजें नही खा सकते ।। आज सुनने में ये सब बहुत अजीब सा लगेगा, पर ये सच था ...
सर से घूंघट हटाना बेहदूगी थी, पति की थाली में संग खा लेना बेशर्मी, ससुर के सामने जाने, बैठने और बोलने की इजाजत नहीं, बहू के होते अगर सास और ननद को काम करना पड़ा तो बहू में संस्कार नहीं ...
ये कैसी दुनिया मे आ गई थी, मुझे समझ नहीं आ रहा था, जिंदगी बस रसोई और घर के कामों में सिमटकर रह गई , मै, मेरे सपने, मेरे शौक मेरे नहीं रहे अब, बस घर परिवार को खुश रखने की जद्दोजहद में गुजरने लगी जिंदगी, एक अचछी बहू बनने की लगातार कोशिश भी कभी मुझे ये तमगा नहीं दिला पाई ...
गलती किसकी थी, न मेरी न मेरे माता-पिता की, और न मेरे ससुराल वालों की, गलती थी दो अलग-अलग परिवेश के लोगों की एक होने की, अलग माहौल में पले बढे होने की .. संकीर्ण विचारधारा की ।
जिंदगी आसान होती नहीं कभी इसे बनाना पड़ता है, कुछ सह कर कुछ चुप रह कर, और जरूरी हो तो कह कर..
जो गुजर गयी, वो कल की बात थी
आने वाली जिंदगी की सुनहरी रात थी
अब शिकवा गिला नहीं किसी से
जिंदगी जी रहीं हूँ अपनी मर्जी से
मुश्किल भरे दिनों ने सब्र दिया
हमे अपने सपनों के करीब
जाने का रास्ता दिखा दिया
आज जो मै आप सब के सामने हूँ, तो कुछ शिकायत नहीं किसी से, जीने का असल मतलब समझ रही हूँ, अपने शौकों मे खुद को फिर से जिंदा कर रही हूँ, जिंदगी बहुत खुबसूरत है दोस्तों, इसका हर पल भरपूर जियें और अपने सपनों को जींवत बनाए मेरी तरह 😊😍❤
Lovely.. Story of everyone women
ReplyDeleteYes . Every women's story . Sabd chaiye bs ,dard bi sanjhi or khusiyaan bi 😊
DeleteWithout being surrounded by various responsibilities no one can emerge like a human whether its inside or outside home responsibilities...
ReplyDeleteAnd thats why you are now having all the qualities to be called as perfect Alka ji, whether its cooking or writing or gardening or every responsibility you are bestowed upon...
Sach kaha Priya .. log kehte hai sona aag main tap kr hi nikharta hai ... waisa hi kch jindgi k sath bi hai .. muskilo se nikal kr bahar aaya insaan khara ho jata hai .. Perfect ho jata hai 😊😊
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