#kchbaatenmnki Mera ghar

 एक दर्द जो साझा है हमारे समाज में, औरत के अस्तित्व का बहुत परिवर्तन आया है समाज में, लोगों की सोच में, फिर भी बहुत से लोग मेरी इस बात से सहमत होंगे,ये एक कटु सत्य है
जितनी भी आधुनिकता आ गई हो
 फिर भी हम औरतें  अपने  सम्मान, अपने अधिकारों की पहुंच से अभी बहुत बहुत दूर है ...  और अब वक्त है इन दूरियों को पाटने का, खुद की जगह बनाने का, और ये कोई देगा नहीं हमे,हमे खुद अपनी जगह बनानी होगी ...

कुछ एक लोगों की सोच में परिवर्तन से ये संभव भी नहीं, जरूरत है हर खासो आम की सोच मे परिवर्तन की ......
थोड़ा दर्द,थोड़ी सच्चाई, ले कर आई हूँ ... कविता मेरा घर

             मेरा  घर 

माँ के घर में पलते बढते 
मेरा घर है,सोचा करती 
सारे घर में पतंग सी
 मै उड़ती फिरती 
सजाती, संवारती 
घर का कोना कोना 
मेरा घर है आखिर
 इसको सबसे सुन्दर है होना 
जैसे जैसे उम्र बढी
कानो ने अकसर एक बात सुनी 
एक दिन ऐसा है आना
जिस दिन मुझको 
अपने घर है जाना 
मन को ठेस लगी कि
 ये घर तो मेरा नहीं 
पर एक दिन जाउंगी अपने घर 
आंखों ने ढेरों सपने बुन डाले
फिर वो एक दिन भी आया 
माँ बाप ने करी विदाई 
बिछुड़ने का दर्द बहुत गहरा था
पर दिल को अलग सुकून था 
आखिर अब अपने घर मै आई 
देहरी पर जब कदम पहला रखा 
लाड़ चाव से आंख भर आई 
आखिर अब अपने घर मै आई 
क्षणिक खुशी थी पल में ढह गयी 
सर से पल्लू जरा सरक गया 
कड़क दी आवाज़ सुनाई 
हमारे घर में, हमारे कायदे है 
उस हिसाब से रहना सीखो 
सुनकर दिल से हाय ये आई 
माँ कहती थी
 जो करना अपने घर करना
ये कहते हमारे घर में
 हमारे तौर तरीकों से चलना 
 जन्म लिया जहाँ, बचपन बीता 
जिस आंगन चलना सीखा
 हंसना सीखा, बोलना सीखा 
उस घर पर मेरा अधिकार नहीं 
जिस घर ब्याही
 वहां के लिए गैर घर से आई 
इस घर पर मेरा अधिकार नहीं 
पति कहे ये मेरा घर है
 सास ससुर कहे मेरा 
मुझे बस इतना बता दे कोई
 वो जो बचपन से सुना था 
वो जो सपनों में बुना था 
वो जो आंखो मे बसा था 
वो जो अब तक मिला नहीं है 
वो जो बस मैंने सुना था 
एक दिन मेरा भी घर होगा 
लेकिन जाने वो कब होगा  .... 
किसे पता है वो कब होगा 
जिस दिन मेरा भी घर होगा .... 








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