नहीं मिलती अपनी गलती

 


कुरेद कुरेद, मीन -मेख, कमियां तलाशता है


दूसरों की गलतियों को, तौलता है, मापता है,


छोटी भी हो बात तो, खींचता है,तानता है,


घोल घोल कर चुगलियों से, मन की दीवारें सानता है,


पर अपनी गलतियों को इंसान, हमेशा, कम आंकता है।


राई के बनाता है पहाड़, शब्दों में  तेज नुकीली धार,


चीर फाड़ कर बातों का, बनाता है ख्याली अचार,


रिश्तों को तोड़ -मरोड बिगाड़ देता है आकार ,


हर हाल में खुद को‌ फिर भी  बेकुसूर मानता है,


अपनी गलतियों को इंसान, हमेशा कम आंकता है।


तार -तार रिश्तों के तार नोचता है,


कुछ नहीं किया फिर भी ये सोचता है,


क्या हो तुम  ? बेशक दुनिया से तो छिपा है,


 पर मन से कैसा धोखा वो तो सब जानता है,

 

अपनी गलतियों को इंसान, हमेशा कम आंकता है ।


आईना देख क्या ? कभी कुछ ख्याल आता नहीं,


अपने जमीर पर क्या ? कोई सवाल जाता नहीं,


बेदाग होते तो शायद खुदा हो गये होते,


सच्चाई ये शायद हर कोई जानता है,


पर अपनी गलतियों को इंसान, हमेशा कम आंकता है ।


















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